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kavita

हूँ मैं परवाना मगर शम्मा तो हो रात तो हो जान देने को हूँ मौजूद कोई बात तो हो दिल भी हाज़िर सर-ए-तसलीम भी ख़म को मौजूद कोई मरकज़ हो कोई क़िबला-ए-हाजात तो हो दिल तो बे-चैन है इज़्हार-ए-इरादत के लिए किसी जानिब से कुछ इज़्हार-ए-करामात तो हो दिल-कुशा बादा-ए-साफ़ी का किसे ज़ौक़ नहीं बातिन-अफ़रोज़ कोई पीर-ए-ख़राबात तो हो गुफ़्तनी है दिल-ए-पुर-दर्द का क़िस्सा लेकिन किस से कहिए कोई मुस्तफ़्सिर-ए-हालात तो हो दास्तान-ए-